Job 26
1तब अय्यूब ने जवाब दिया, 2जो बे ताक़त उसकी तूने कैसी मदद की; जिस बाज़ू में कु़व्वत न थी, उसको तू ने कैसा संभाला। 3नादान को तूने कैसी सलाह दी, और हक़ीक़ी पहचान ख़ूब ही बताई। 4तू ने जो बातें कहीं? इसलिए किस से और किसकी रूह तुझ में से हो कर निकली ?” 5‘मुर्दों की रूहें पानी और उसके रहने वालों के नीचे काँपती हैं। 6पाताल उसके सामने खुला है, और जहन्नुम बेपर्दा है। 7वह शिमाल को फ़ज़ा में फैलाता है, और ज़मीन को ख़ला में लटकाता है। 8वह अपने पानी से भरे हुए बादलों पानी को बाँध देता और बादल उसके बोझ से फटता नहीं। 9वह अपने तख़्त को ढांक लेता है और उसके ऊपर अपने बादल को तान देता है। 10उसने रोशनी और अंधेरे के मिलने की जगह तक, पानी की सतह पर हद बाँध दी है। 11आसमान के सुतून काँपते, और और झिड़की से हैरान होते हैं। 12वह अपनी क़ुदरत से समन्दर को तूफ़ानी करता, और अपने फ़हम से रहब को छेद देता है। 13उसके दम से आसमान आरास्ता होता है, उसके हाथ ने तेज़रू साँप को छेदा है। देखो, यह तो उसकी राहों के सिर्फ़ किनारे हैं, और उसकी कैसी धीमी आवाज़ हम सुनते हैं। लेकिन कौन उसकी क़ुदरत की गरज़ को समझ सकता है?” 14
Copyright information for
UrdULB